Saturday, August 21, 2010
हकलाहट : दिल पे मत ले यार . . . !
समाज का हकलाहट के बारे में बहुत ही गलत नजरिया देखने को मिलता है. आमतौर पर हकलाने वालों का मजाक उड़ाया जाता है जिससे वे धीरे-धीरे अपने ही परिवार और समाज से अलग होने लगते हैं.
दुःख उस समय और ज्यादा होता है जब हिंदी फिल्मों में हकलाहट को हंसी के साधन के रूप में परोसा जाता है. आजकल बॉलीवुड की अधिकतर फिल्मों में कहीं न कहीं पात्रों से हकलाहट का अभिनय करवाने की परंपरा सी चल पडी है. शाहरूख खान ने तो कई फिल्मों में हकलाहट का अभिनय किया है और हकलाहट वाले उनके डायलाग बहुत मशहूर रहे हैं.
पर यहाँ एक अहम् सवाल यह है की आखिर कब तक हकलाहट दोष को मनोरंजन के रूप में समाज उपयोग करता रहेगा. इस दिशा में मीडिया को आगे आना चाहिए. हमारा समाज फिल्मों और मीडिया से बहुत कुछ सीखता है और उससे काफी हद तक प्रभावित भी होता है, इसलिए फिल्मों, टीवी धारावाहिकों में हकलाहट को हँसी के रूप में प्रस्तुत करना बंद करना चाहिए. और जहाँ तक संभव हो सके हकलाहट दोष के प्रति सकारात्मक बातें दिखने से समाज में सही सोच का विकास होगा.
और हाँ... अगर आपको देखकर कोई हँसता भी है तो दिल पे मत ले यार . . . अकसर हम लोग स्पीच की कई तकनीको का इस्तेमाल करने में संकोच करते हैं की सामने वाला क्या सोचेगा. मै यहाँ कहना चाहता हूँ की सामने वाला हँसने के के अलावा और क्या करेगा? स्पीच की तकनीको का इस्तेमाल कर सही तरीके से बोलने की कोशिश करने पर आपको कोई थप्पड़ नहीं मारेगा और और ना ही सजा देगा, लेकिन बार-बार गलत तरीके से बोलकर और संकोच कर हम लोग जरूर अपनी वाणी को ख़राब करते है.
आपकी हकलाहट को सिर्फ आप ही दूर कर सकते हैं.
मशहूर कवि दुष्यंत कुमार ने कहा है :-
कौन कहता है आसमान से सुराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों...
- अमितसिंह कुशवाह,
स्पेशल एजुकेटर (एच.आई.)
इंदौर (भारत)
मोबाइल : 0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8
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1 comment:
हम आप से सौ फ़ीसदी सहमत हैं यार! यह बात विकलांगताओं पर भी लागू होती है. अच्छा आलेख. आभार.
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