प्रकृति ने जिनके शरीर में कोई कमी छोड़ दी उन्हें विकलांग कहकर उनके दुर्भाग्य के लिए प्रकृति के अन्याय को दोषी माना जाया है। लेकिन सच तो यह है की प्रकृति ने इनके साथ जितना बड़ा अन्याय किया उससे कहीं बड़ा अन्याय हमारा समाज करता है।
वे अपनी एक छमता खोकर भी शेष छमताओं से अपना भाग्य संवार सकते हैं लेकिन समाज उन्हें दया का पात्र बनाकर रखने पर मानो आमादा रहता है। उन्हें कमजोर और नकारा समझा जाता है।
परिवार और समाज का नजरिया विकलांगों के प्रति गैर जिम्मेदाराना होता है। उन्हें दरकिनार और शोषित किया जाता है।
सच तो यह है की विकलांग भी आम लोगों की तरह काम कर सकते हैं। सहायक उपकरणों और तकनीकी साधनों के बदौलत वे लगभग सभी प्रकार के कार्य कुशलता से कर सकते हैं।
विकलांग बच्चों को सीखने के लिए विशेष प्रकार के साधनों की जरुरत कुछ हद तक होती है। इनके लिए स्पेशल स्कूल होते हैं। जहाँ पर वे आसानी से सीख सकते हैं।
बस, जरुरत है समाज के सकारात्मक व्यवहार और सहयोग की। विकलांगों को सहानुभूति नही, समानुभूति की दरकार है। उन्हें उनके अधिकार चाहिए दया नही।
- अमितसिंह कुशवाह
( आप विकलांगता या विकलांगों के बारे में किसी प्रकार की कोई जानकारी चाहते हैं तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं।)
मोबाइल : 09300939758
Friday, July 17, 2009
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