
यह विकलांगता विभिन्न स्तर की हो सकती है जिसमें बहुत कम, मध्यम, ज्यादा, बहुत ज्यादा या पूरी तरह भी हो सकती है। विकलांगता के स्तर की श्रेणी सुनने की शक्ति के नुकसान पर आधारित होती हैं। यह प्रत्येक कान में अलग भी हो सकती है या फिर दोनों कानों से कुछ भी सुनाई नहीं दे सकता है। अगर यह एक कान में होती है तो इसे यूनीलैट्रल और अगर दोनों कानों में होती है बाइलैट्ररल कहा जाता है।
विकलांगता जन्म से या फिर बाद में भी हो सकती है। अगर यह जन्मजात और दोनों कानों में होती है तो इससे सामान्य भाषा और बोलने के विकास में परेशानी होती है। जन्म के बाद यह विकलांगता जीवन के किसी भी समय धीरे धीरे या एकदम हो सकती है और इससे भी भाषा के विकास और बोलने में कठिनाई होती है। इस विकलांगता को आमतौर से तीन भागों भाषा में बांटा जाता है – प्रीलिंगुअल यानी भाषा के विकास और बोलने से पहले, पेरीलिंगुअल यानी भाषायी कौशलों को सीखने की प्रक्रिया तथा बोलेने की क्षमताओं के दौरान तथा पोस्टलिंगुअल अर्थात भाषायी विकास हासिल करने और बोलना सीखने के बाद पैदा हुई विकलांगता।
भारत में प्रतिदिन ५० से अधिक बच्चे बधिर पैदा होते है। प्रतिवर्ष लगभग २० हजार बधिर बच्चों की संख्या में इजाफा होता है बधिरता संबंधी सर्वेक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि लगभग १० प्रतिशत भारतीय किसी न किसी प्रकार की बधिरता के शिकार है। जन्मजात बधिरता का एक हद तक इलाज संभव है बशर्तें समय रहते इसका पता चल जाए। यदि बच्चे में बधिरता का संशय हो तो इसके लिए ऑडियों मेट्री में जांच कराई जानी चाहिए। आजकल ब्र्रेन इवोक्ड रेस्पोन्स ऑडियों मेट्री (बेरा) की सुविधा उपलब्ध है। इस जांच से नवजात शिशु ही नहीं, सात माह पश्र्चात गर्भस्थ शिशु में भी बधिरता का पता चल सकता है। ब्रेन इवोक्ड रेस्पान्स ऑडियों मेट्री द्वारा बच्चे की श्रवण क्षमता का आकलन कर बच्चे में उचित समय पर श्रवण मंत्रों से सुनने की क्षमता विकसित की जा सकती है। कोकलियर इम्पलांट शल्य चिकित्सा द्वारा बधिरता का सफलता पूर्वक इलाज किया जा सकता है। वयस्क व्यक्ति में बधिरता के प्रमुख कारणों में कान में मैल जमना, कान या मस्तिष्क में किसी प्रकार की चोट। बाहरी या अंदरूनी, जीवाणु एवं वाइरल संक्रमण तथा ध्वनि प्रदूषण प्रमुख है। आज बढता हुआ ध्वनि प्रदूषण, श्रवण क्षमता पर घातक प्रभाव पहुंचा रहा है। अत: ध्वनि प्रदूषण पर निंयत्रण बेहद आवश्यक है वृद्वावस्था में भी शने: शनै: श्रवण क्षमता का हास होता है।
भारत में प्रतिदिन ५० से अधिक बच्चे बधिर पैदा होते है। प्रतिवर्ष लगभग २० हजार बधिर बच्चों की संख्या में इजाफा होता है बधिरता संबंधी सर्वेक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि लगभग १० प्रतिशत भारतीय किसी न किसी प्रकार की बधिरता के शिकार है। जन्मजात बधिरता का एक हद तक इलाज संभव है बशर्तें समय रहते इसका पता चल जाए। यदि बच्चे में बधिरता का संशय हो तो इसके लिए ऑडियों मेट्री में जांच कराई जानी चाहिए। आजकल ब्र्रेन इवोक्ड रेस्पोन्स ऑडियों मेट्री (बेरा) की सुविधा उपलब्ध है। इस जांच से नवजात शिशु ही नहीं, सात माह पश्र्चात गर्भस्थ शिशु में भी बधिरता का पता चल सकता है। ब्रेन इवोक्ड रेस्पान्स ऑडियों मेट्री द्वारा बच्चे की श्रवण क्षमता का आकलन कर बच्चे में उचित समय पर श्रवण मंत्रों से सुनने की क्षमता विकसित की जा सकती है। कोकलियर इम्पलांट शल्य चिकित्सा द्वारा बधिरता का सफलता पूर्वक इलाज किया जा सकता है। वयस्क व्यक्ति में बधिरता के प्रमुख कारणों में कान में मैल जमना, कान या मस्तिष्क में किसी प्रकार की चोट। बाहरी या अंदरूनी, जीवाणु एवं वाइरल संक्रमण तथा ध्वनि प्रदूषण प्रमुख है। आज बढता हुआ ध्वनि प्रदूषण, श्रवण क्षमता पर घातक प्रभाव पहुंचा रहा है। अत: ध्वनि प्रदूषण पर निंयत्रण बेहद आवश्यक है वृद्वावस्था में भी शने: शनै: श्रवण क्षमता का हास होता है।
किसी भी प्रकार के बच्चे या वयस्क के लिए क्या-क्या हों सकता है इसकी जानकारी के लिए आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
यह एक प्रयास है ताकि आपको विकलांग व्यक्ति के बेहतर जीवन के रास्ते की सही जानकारी मिल सके।
आप कभी भी हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें - 093009-३९७५८
- अमितसिंह कुशवाह
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